CTET Class 5- भाषा और चिन्तन


हम सहृदय धन्यवाद देते है प्रियंका को यह अतिमहत्वपूर्ण नोट्स प्रदान करने के लिए।
CTET Class 4 सामाजिकरण प्रक्रियाएँ: सामाजिक विश्व और बालक (शिक्षक ,अभिभावक और मित्रगण) 

भाषा- भाषा भावों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है । भाषा के द्वारा हम विचारों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से पहुंचा सकते हैं । मनुष्य को पशुओं से श्रेष्ठ इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके पास भावों को ,विचारों को, संवेगों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा रूपी माध्यम होता है ।


बालकों में भाषा का विकास- भाषा सीखना या बोलना एक कौशल है ,भाषा के द्वारा भावों को व्यक्त करना भी एक कौशल है । यह बालक के जन्म के बाद ही प्रारंभ हो जाता है।

भाषा विकास की प्रारम्भिक अवस्था-

इस अवस्था में बालक ध्वनि युक्त शब्दों को बोलने एवं समझने के लिए स्वयं को तैयार करता है ।
इस अवस्था में बालक रोकर ,चिल्लाकर अपने भावों को व्यक्त करता है । ये ध्वनियाँ स्वभाविक होती है ,इन्हें वह सीखता नहीं है ।
बालकों को इशारों की भाषा,हाव-भाव भी समझ में आने लगते हैं ।
इस अवस्था में बालक एक- दो स्वर-व्यंजनों की ध्वनियाँ निकालकर अपने हाव-भावों को प्रदर्शित करते है ।

भाषा महत्व-

इच्छाओं और आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए भाषा को माध्यम बनाया जाता है । एक व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को भाषा के माध्यम से दूसरे के सामने प्रकट करता है तथा दूसरा व्यक्ति तत्काल पहले व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति हेतु समाधान करने का प्रयास करता है ।
बालक अभिवावकों से प्रश्न पूछकर ,कोई समस्या प्रस्तुत करके भाषा के माध्यम से उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं ।
भाषा के माध्यम से ही व्यक्ति समाज में अपनी भूमिका निर्धारित करता है ।
दूसरों के विचारों को प्रभावित करने के लिए भी भाषा को माध्यम बनाया जाता है।



               भाषा-विकास के सिद्धान्त

परिपक्वता के सिद्धांत- परिपक्वता का अर्थ है की भाषा अवयवों एवं स्वरों पर नियंत्रण होना । जब स्वरों व भाषा पर नियंत्रण होता है ,तो अभिव्यक्ति उत्तम होती है ।

अनुबंध का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार बालक पहले वस्तुओं के साथ साहचर्य स्थापित करता है ,तथा अभ्यास हो जाने पर वस्तु की उपस्थिति पर संबंधित शब्द से संबोधित करता है।

अनुकरण का सिद्धांत- इस सिद्धांत के अनुसार बालक अपने परिवार तथा साथियों की भाषा का अनुकरण कर कर सीखता है ।

चोमस्की का भाषा अर्जित करने का सिद्धांत- बच्चे शब्दों की निश्चित संख्या से कुछ निश्चित नियमों का अनुकरण कर वाक्यों का निर्माण सीख लेते हैं।

 भाषा-विकास को प्रभावित करने वाले कारक


स्वास्थ्य ,बुद्धि, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, लिंगीय भिन्नता ,परिवार का आकार, बहुजन्म द्वि-भाषावाद, परिपक्वता, संवेगात्मक तनाव, व्यक्तित्व ,परीक्षण विधि ।


चिंतन की प्रकृति - चिंतन वह प्रक्रिया है ,जो व्यक्ति की सुषुप्तावस्था अर्थात् सोते समय भी क्रियाशील रहती है ।
चिंतन के द्वारा हम घटना या प्राप्त सूचनाओं को नवीन रूप में परिवर्तित कर स्वयं के ज्ञान के लिए सहायक बना सकते हैं ।
चिंतन का उद्भव एक समस्या से होता है और यह कई चरणों में चलने वाली प्रक्रिया है । चिंतन के द्वारा ही हम समस्या का समाधान करते हैं।
चिंतन संकल्पना एवं तर्क जैसी मानसिक समस्याओं पर निर्भर करता है ।


भाषा दोष- बालक द्वारा स्वयं यंत्रों पर नियंत्रण न रख पाने के कारण भाषा दोष उत्पन्न होता है । भाषा दोष के निम्नलिखित प्रकार है -
        ध्वनि परिवर्तन
        अस्पष्ट उच्चारण
         तुतलाना
         हकलाना
         तीव्रता स्पष्ट वाणी

संकल्पना - चिंतन का प्रमुख तत्व संकल्पना है ।
         संकल्पना के अंतर्गत मीठा, खट्टा ,क्रोध, भय आदि लक्षणों की बात की जाती है ।
        ज्ञान का क्रमबद्ध रूप संकल्पना जैसी मानसिक संरचना व् के द्वारा प्राप्त होती है।


तर्क - अनुमान द्वारा उत्पन्न तर्क चिंतन का मुख्य पक्ष है।
        तर्क के उद्देश्यपूर्ण होने के कारण तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष व निर्णय लिए जाते है ।

        निगमन और आगमन यह तर्क के दो प्रकार है ।

समस्या-समाधान - आज के युग में प्रतिदिन व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई समस्या आती है और उन समस्याओं का समाधान हमारे दैनिक जीवन का अंग बन चुका है ।
        चिंतन के द्वारा हम मस्तिष्क को केंद्रित कर किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान कर सकते हैं ।
        अभीसूचक नियम या Roal of thumb के अनुसार व्यक्ति अन्वेषणात्मक मामले में समस्या समाधान के लिए किसी नियम व विचार का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है।
सृजनात्मक चिन्तन-
        इससे अपसारी चिंतन के नाम से भी जाना जाता है ।

        संपूर्ण विश्व के सभी आविष्कारों व खोजों का परिणाम सृजनात्मक है ।
        कलाकार, संगीतकार, लेखक, कवि, वैज्ञानिक, खिलाड़ी कोई भी सृजनात्मक विचारक हो सकता है।

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