सामाजिकरण प्रक्रियाएँ:
सामाजिक विश्व और
बालक (शिक्षक ,अभिभावक और मित्रगण)
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समाजीकरण
की अवधारणा - समाजीकरण
से न केवल मानव जीवन का प्रभाव अखंड तथा सतत रहता है , बल्कि
इसी से मानवोचित गुणों का विकास भी होता है और व्यक्ति सुसभ्य व सुसंस्कृत भी बनता है ।
● समाजीकरण
के कुछ
महत्वपूर्ण अभिकर्ता
माता-पिता, समवयस्क,
समूह ,विद्यालय ,धार्मिक
संस्थाएं और जनसंचार माध्यम जैसे दूरदर्शन इत्यादि हैं ।
● समाजीकरण का कार्य समाज में रहकर ही संभव है न की समाज से अलग रह कर ।
समाजीकरण के कारक - पालन-पोषण ,सहानभूति ,सहकारिता ,निर्देश ,आत्मीकरण , अनुकरण
,सामाजिक शिक्षण ,पुरस्कार एवं दंड ।
बालकों
का समाजीकरण करने वाला तत्व- बालक
जन्म के समय कोरा पशु होता है ।जैसे-जैसे वह समाज के अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक संस्थाओं के संपर्क में आकर सामाजिक क्रियाओं में भाग लेता है ,वैसे-वैसे वह अपनी पार्श्विक प्रवति पर नियंत्रण करते हुए सामाजिक मूल्य तथा आदर्शों को सीखता है ।
बालक का सामाजिकरण करने वाले तत्व निम्न है-
वंशानुक्रम ,परिवार ,पड़ोस ,स्कूल ,बालक के साथी ,समुदाय आदि।
सामाजिकरण मे अध्यापक की भूमिका - विद्यालय न केवल शिक्षा का एक औपचारिक साधन है , बल्कि यह बच्चे के सामाजिकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करता है ,इसमें शिक्षक की भूमिका अहम है । परिवार के बाद विद्यालय निवास स्थान है ,जहाँ बालक शिक्षक के माध्यम से सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को सीखता है।
समाजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक का सर्वप्रथम कार्य किया है कि वह बालक के माता-पिता से संपर्क स्थापित करके तथा बालक की रुचियों तथा मनोवृत्तियों के विषय में ज्ञान प्राप्त करे। बालकों को सामाजिक कार्य हेतु शिक्षक को चाहिए कि वह उनके साथ इसने वह सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें।
बच्चे
के समाजीकरण में परिवार एवं माता पिता की भूमिका -
● समाजीकरण
करने वाली
संस्था के
रूप में
परिवार वह
माता-पिता का
असाधारण महत्तव
है । माँ के
त्याग और
पिता की
सुरक्षा में
रहते हुए
बालक जो
कुछ सीखता
है ,वह उसकी
जीवन की
स्थाई पूँजी
होती है
।
● बच्चे
को नियमित
रूप से
खाने-पीने की,
पहनने की
तथा रहने
की सीख
उसे माँ
से मिलती
है ,इससे बच्चे
के मन
में एक
सुरक्षा की
भावना पनपती
है ,जो की
उसके जीवन
को स्थिर
तथा दृढ़
बनाती है
जो उसके
व्यक्तित्व का
विकास करती
है ।
● माता
और पिता
से बच्चे
की अधिकतर
आवश्यकताएँ पूरी
होती हैं
।परिवार में
ही बच्चे
को सर्वप्रथम
यह ज्ञात
होता है
कि उसे
कौन-कौन से
काम करने
चाहिए और
किन-किन कार्यों
से बचना
चाहिए ।
● परिवार
एवं समाज
में अनुकूलित
होने की
प्रक्रिया को
समायोजन कहते हैं । जो समाजीकरण की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है ।
● परिवार
में रहकर
बच्चा माँ-बाप
से सामाजिक
उत्तरदायित्व का
अर्थ ,क्षमा का
महत्व और
सहयोग की
भावना सीखता
है तथा
अपनी मौलिक
धारणाओं ,आदर्शों एवं
शैली की
रचना करता
है ।
● माँ-बाप
की सामाजिक
प्रतिष्ठा एवं
परिवार के
आर्थिक स्तर
का भी
बच्चे के
समाजीकरण पर
प्रभाव पड़ता
है
।
समाजीकरण
में खेल की भूमिका - खेल को बालक की रचनात्मक ,जन्मजात ,स्वतंत्र ,आत्मप्रेरित ,स्फूर्तिदायक ,स्वलक्षित तथा आनंददायक प्रवत्ति कहा जाता है ।खेल-क्रियाओं द्वारा बालक को आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलता है ,जिससे उसके सामाजिकरण मे सहायता मिलती है ।
● सामूहिक
खेलों से
आदान-प्रदान की
भावना का
विकास होता
है । खेल
के माध्यम से बच्चों
में समूह
के नेतृत्व
के गुणों
का विकास
होता है
।
● खेलों में कुछ
विशिष्ट नियमों
एवं अनुशासन
का पालन
करना होता
है , यह बालक
को अनुशासित
होने में
सहायता करता
है ।
● खेल
में हार
जीत का
अनुभव बच्चों
में सहनशक्ति
का विकास
करता है
,जो समाजीकरण
में अत्यंत
आवश्यक है
।
हम सहृदय धन्यवाद देते है प्रियंका को यह अतिमहत्वपूर्ण नोट्स प्रदान करने के लिए।
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CTET Class 4 सामाजिकरण प्रक्रियाएँ: सामाजिक विश्व और बालक (शिक्षक ,अभिभावक और मित्रगण)
Reviewed by BasicKaMaster
on
08:38:00
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Thank u mam
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