समाज निर्माण के रुप में लिंग- लिंग भूमिकाएँ,लिंग पूर्वाग्रह और शैक्षणिक व्यवहार
लैगिंक मुद्दे-
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स्त्री पुरुष की बनावट लैंगिक असमानता का कारण नहीं है बल्कि दोनों
के बारे में प्रचलित धारणाएं लैंगिक असमानता का मुख्य मुद्दा है ।
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सामान्यतः लोग यह मानते हैं कि खाना बनाना, कपड़े धोना, साफ सफाई करना आदि
कार्य महिलाओं के हैं
,जबकि पुरुष भी यह कार्य कर सकते हैं परंतु उन्होंने अपनी धारणा
यह बना ली है कि ऐसे कामों को करना केवल महिलाओं की जिम्मेदारी है और इसी कारण से
वह इस प्रकार का कोई कार्य करना नहीं चाहते , यही
लैंगिक असमानता का कारण है । जिससे सभी को (स्त्री व पुरुष ) समान
नही समझा जाता।
श्रम का लैंगिक विभाजन-
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श्रम के बटवारे के अनुसार घर के अंदर के
सारे काम महिलाएं करती हैं व पुरुष घर के बाहर का कार्य करते है । इसका परिणाम यह
हुआ कि महिलाएं घर के अंदर ही सिमट कर रह गई व समाज के सार्वजनिक जीवन पर पुरुषों
का अधिकार हो गया ।
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सार्वजनिक जीवन के अधिकारों को प्राप्त
करने के लिए महिलाओं ने संपूर्ण विश्व में अनेक संगठन बनाए व आंदोलन किए जिसमें
महिलाओं ने व्यक्तिगत परिवारिक व सामाजिक जीवन में बराबरी की मांग उठाई । इसे
नारीवाद आंदोलन कहा जाता है ।
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आज के आधुनिक युग में भी हमारा समाज पितृ
प्रधान है । आज के समय में भी महिलाओं के साथ कई तरह के भेदभाव होते हैं व उनका
दमन किया जाता है जैसे-
कन्या भ्रूण हत्या ।
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पुरुषों की साक्षरता दर 84 प्रतिशत
है जबकि महिलाओं की मात्र
65% ।
65% ।
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स्कूली परिक्षाओं के
परिणामों को देखें तो बहुत सी जगहों पर लड़कियों ने अव्वल अंक प्राप्त किए परंतु
आगे पढ़ाई के लिए उनके माता-पिता
संसाधन नहीं जुटा पाते और यदि व्यवस्था होती है तो वह अपने संसाधनों को लड़के-लड़की दोनों पर खर्च
करने की जगह लड़कों पर खर्च करना ज्यादा पसंद करते हैं ।
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समान कार्य के लिए समान मजदूरी यह मजदूरी
से संबंधित अधिनियम में अंकित है परंतु फिर भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम
मजदूरी मिलती है
,भले ही दोनों ने समान कार्य किए हो ।
पूर्वाग्रह रूढ़िबद्धता के कारण लैंगिक
भेदभाव-
रूढ़िबद्ध धारणाएं वे धारणाएं हैं जो किसी व्यक्ति, वस्तु ,जाति या वर्ग के बारे
में बनाई जाती है और इन धारणाओं का सत्यता से कोई संबंध नहीं होता है ।
उदाहरण - कोई व्यक्ति सभी
लड़कियों के बारे में यह सोचे की सभी लड़कियां मात्र गृह व्यवस्था के कार्य के लिए
बनी है तो यह एक रूढ़िबद्ध धारणा है।
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विद्यालय में आए अतिथि के स्वागत सत्कार
के लिए मात्र लड़कियों को काम में लगाना रूढ़िबद्ध धारणा को प्रदर्शित करता है ।
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पूर्वागृह-भेदभाव पक्षपात जैसी
धारणाओं से संबंधित है । पूर्व विचारों सोच मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति के
साथ भेदभाव किया जाना पूर्वाग्रह कहलाता है । उदाहरण- समाज में यह मान्यता
प्रचलित है कि लड़के ही मां-बाप
के बुढ़ापे की लाठी है ।
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विद्यालय में हो रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों
में मात्र लड़कियों को स्थान देना लैंगिक पूर्वाग्रह है ।
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लड़कियों का शरीर खेल के लिए उपयुक्त
नहीं है ,इसलिए
लड़कियों को खेल से वंचित रखना लैंगिक पूर्वाग्रह का उदाहरण है ।
लैंगिक भेदभाव एवं विद्यालय
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विद्यालयों में शिक्षकों के पक्षपातपूर्ण
रवैये के कारण लैंगिक भेदभाव दिखाई पड़ता है जो की संवैधानिक रूप से पूर्ण रूप से
गलत है ।
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शिक्षकों के लड़कों का लड़कियों से समान
व्यवहार करके उन्हें इस प्रकार की रूढ़िबद्ध धारणाओं से स्वयं को व छात्र-छात्राओं को बचाना
चाहिए ।
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कल्पना चावला ,सुनीता विलियम्स को
उनकी इच्छानुसार क्षेत्रों में कैरियर बनाने की सलाह दी गई इस प्रकार हमें भी
लड़कियों पर यह दबाव न डालते हुए की लड़कियां मात्र
गृह विज्ञान व जीव विज्ञान के क्षेत्र को चुनें हमें उन्हें उनकी इच्छानुसार अपने
क्षेत्र में जीवन की संभावनाओं को ढूंढने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
स्त्री शिक्षा एवं स्त्री सशक्तिकरण -
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स्त्री शिक्षा एवं स्त्री सशक्तिकरण को
बढ़ावा देकर हम समाज से लैंगिक भेदभाव को दूर कर सकते हैं ।
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स्त्रियों को ,लड़कियों को उनके
अधिकारों से परिचित कराकर उन्हें उनके अधिकारों के प्रति सचेत कर के लैंगिक भेदभाव
को कम किया जा सकता है ।
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महिला समाख्या (स्त्रियों की समानता के
लिए शिक्षा)
द्वारा गांव में महिला संघ के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के
लिए महिलाओं को तैयार किया जाता है।
CTET Class 9 - समाज निर्माण के रुप में लिंग भूमिकाएँ
Reviewed by BasicKaMaster
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19:30:00
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