बुद्धि
1. वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण
सामूहिक बुद्धि परीक्षण - इसका आरम्भ अमेरिका में प्रथम विश्वयूद्ध के समय हुआ था। इसमें एक समय में अनेक व्यक्तियों का परीक्षण किया जाता है। इसके दो भाग में विभाजित किया गया है।
i) भाषात्मक (Verbal)
1.अंकगणित के प्रश्न
ii) क्रियात्मक परीक्षण - जिन व्यक्तियों को लिखने पढ़ने में समस्या होती है या वे भाषात्मक रूप से कमजोर होते हैं, उनके लिये यह परीक्षण उपयुक्त रहता है। इस परीक्षण द्वारा व्यक्ति की कल्पना शक्ति या मूर्ति बुद्धि की क्षमता का आकलन होता है। क्रियात्मक परीक्षण में आस-पास मौजूद वास्तविक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है व्यक्ति को उन वस्तुओं से जुड़ी पहेलीनुमा परिस्थितियों को हल करने का कार्य दिया जाता है।
उदाहरण - विभिन्न आकारों के टुकड़ो को उन्हीं के जैसे साचे में व्यवस्थित करना, बिन्दु से बिन्दु मिलाकर चित्र पूर्ण करना, समान रंग व आकार की वस्तुओं को संयोजित करना, बिखरे हुए टुकड़ों को संयोजित कर चित्र पूर्ण करना, मार्ग योजना का भूलभलैया हल करना।
बौद्धिक विवृद्धि और विकास -
बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता -
1.सर्वोत्तम बालक का चुनाव करने में।
बुद्धि किसी बालक के सीखने, तर्क करने, चिन्तन करने, कल्पना करने व
अमूर्त चिन्तन करने की योग्यता है।
परिभाषाएँ -
वुडवर्थ (Wood Worth) - "बुद्धि, कार्य करने की विधि
है।"
टरमन (Terman) - "बुद्धि
अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है।"
बिने (Binet) - "बुद्धि इन चार
शब्दों में निहित है - ज्ञान, अविष्कार, निर्देश और आलोचना।"
रायबर्न (Ryburn) - "बुद्धि वह शक्ति है
जो हमको समस्याओं का समाधान करने और उद्देशयों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।
स्टर्न के अनुसार - बुद्धि व्यक्ति की वह सामान्य योग्यता है, जिसके द्वारा वह
सचेत रूप से नवीन आवश्यकताओं के अनुसार चिन्तन करता है। इस तरह जीवन की नई
समस्याओं एवं स्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालने की सामान्य मानसिक योग्यता बुद्धि
कहलाती है।
बुद्धि के मुख्य तीन पक्ष होते हैं - कार्यात्मक, संरचनात्मक एवं
क्रियात्मक
बद्धि को मुख्यत: तीन श्रेणियों में रखा गया है - सामाजिक बुद्धि, स्थूल बुद्धि एवं
अमूर्त बुद्धि
वंशानुक्रम एवं वातावरण तथा इन दोनो की अन्त: क्रिया बुद्धि को निर्धारित करने
वाले कारक है।
बुद्धि के सिद्धान्त
एक कारक सिद्धान्त (One Factor Theory) - इस सिद्धान्त का
प्रतिपादन बिने (Binet) ने किया। इस सिद्धान्त का
समर्थन कर इसको आगे बढ़ाने का श्रेय टर्मन और स्टर्न जैसे मनोवैज्ञानिकों को है।
इनका मत है कि बुद्धि एक अविभाज्य इकाई है। इन मनोवैज्ञानिको के अनुसार - बद्धि वह
मानसिक शक्ति है जो व्यक्ति के समस्त कार्यों का संचालन करती है तथा व्यक्ति के
समस्त व्यवहारों को प्रभावित करती है।
द्वि-कारक सिद्धान्त (Bi-Factor Theory) - इस सिद्धान्त के
प्रतिपादक स्पीयर मैन है। इनके अनुसार बुद्धि में दो कारक है - प्रथम, सामान्य मानसिक
योग्यता, द्वितीय विशिष्ट मानसिक योग्यता। एक व्यक्ति जितने ही क्षेत्रो अथवा विषयों
में कुशल होता है, ुसमें उतनी ही विशिष्ट योग्यताएॅ पायी जाती है, स्पीयरमैन का विचार
है कि एक व्यक्ति में सामान्य योग्यता की मात्रा जितनी ही अधिक पाई जाती है, वह उतना ही अधिक
बुद्धिमान होता है।
बहुकारक सिद्धान्त (Multi-Factor Theory) - इस सिद्धान्त के
समर्थक थार्नडाइक थे। इस सिद्धान्त के अनुसार, बुद्धि कई तत्वों
का समूह होती है
और प्रत्येक तत्व में कोई सूक्ष्म योग्यता निहित होती है।
प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sample Theory) - इस सिद्धान्त को प्रतिपादन थाॅमसन ने किया। थाॅमसन ने इस
बात का तर्क दिया कि व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर
निर्भर करता है, इन स्वतंत्र योग्यताओं का क्षेत्र सीमित होता है।
ग्रुप तत्व सिद्धान्त (Group Element Theory) - जो तत्व सभी
प्रतिभात्मक योग्यताओं में तो सामान्य नहीं होते परन्तु कई क्रियाओं में सामान्य
होते है, उन्हें ग्रुप तत्व की संज्ञा दी गई है। इस सिद्धान्त के समर्थकों में थर्सटन
का नाम प्रमुख है। प्रारम्भिक मानसिक योग्यताओं का परीक्षण करते हुए वह इस
निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि कुछ मानसिक क्रियाओं में एक प्रमुख तत्व सामान्य रूप से
विद्यमान होता है, जो इन क्रियाओं के कई ग्रुप होते है, उनमें अपना एक
प्रमुख तत्व होता है। ग्रुप तत्व सिद्धान्त की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह
सामान्य तत्व की धारणा का खण्डन करता है।
गिलफोर्ड का सिद्धान्त - जे.पी. गिलफोर्ड
व उनके सहयोगियों ने बुद्धि परीक्षण से सम्बन्धित अपने अध्ययन में प्रयासों के
द्वारा यह प्रतिपादित करने की चेष्टा की कि हमारी किसी भी मानसिक प्रक्रिया अथवा
बौद्धिक कार्य को तीन आधार आयमों - सक्रिया, सूचना सामग्री या विषय वस्तु तथा उत्पादन में विभाजित किया
जा सकता है। संक्रिया का अर्थ हमारी उस मानसिक चेष्ठा, तत्परता और
कार्यशीलता से होता है, जिसकी मदद से हम किसी भी सूचना सामग्री या विषय-वस्तु को
अपने चिंतन तथा मनन का विषय बनाते है।
प्लूइड तथा क्रिस्टलाइज्ड सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के प्रतिपादक कैनेल है। प्लूइड वंशानुक्रम कार्यकुशलता अथवा
केन्द्रीय नाड़ी संस्थान की दी हुई विशेषता पर आधारित एक सामान्य योग्यता है। यह
सामान्य योग्यता संस्कृति से ही प्रभावित नहीं होते बल्कि नवीन एवं विगत
परिस्थितियों से भी प्रभावित होती है। दूसरी ओर क्रिस्टलाइ़ज्ड भी एक प्रकार की
सामान्य योग्यता है, जो अनुभव, अधिगम, तथा वातावरण सम्बन्धी कारकों पर आधारित होती है।
बहुआयामी बुद्धि - केली एवं थर्सटन
नामक मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि बुद्धि का निर्माण प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के
द्वारा होता है।केली के अनुसार, बुद्धि का निर्माण इन योग्यताओं से होता है, वाचिक योग्यता, गामक योग्यता, सांख्यिक योग्यता, यान्त्रिक योग्यता, सामाजिक योग्यता, संगीतात्मक योग्यता, स्थानिक सम्बन्धों
के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता रूचि और शारीरिक योग्यता.
थर्सटन का मत है कि बुद्धि इन प्राथमिक मानसिक योग्यताओं का समूह होता है -
प्रत्यक्षीकरण सम्बन्धी योग्यता, तार्किक योग्यता, सांख्यिकी योग्यता, स्थानिक या दृश्य योग्यता, समस्या समाधान की
योग्यता, स्मृति सम्बन्धी योग्यता, आगमनात्मक योग्यता और निर्गमनात्मक योग्यता। बहआयामी बुद्धि
होने कारण ही कुछ लोग कई प्रकार के कौशलों में निपुण होते है।
मानसिक आयु एवं बुद्धि परीक्षण
बुद्धि परीक्षण द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताओं का पता लगाया जाता
है। सर्वप्रथम जर्मन मनोवैज्ञानिक वुण्ट का नाम आता है, जिसने 1879 में बुद्धि के
मापने के लिए मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला स्थापित की।
सर्वप्रथम विलियम स्टर्न बुद्धि के मापन के लिए बुद्धि-लब्धि (IQ) के प्रयोग का सुझाव
दिया।
टर्मन ने सर्वप्रथम बुद्धि लब्धांक ज्ञात करने की विधि बताई। इसके अनुसार बुद्धि-लब्धि
को बचने की मानसिक आयु को उसकी वास्तविक आयु से भाग करके, 100 से गुणा प्राप्त
करने पर प्राप्त की जाती है। बुद्धि-लब्धि का सूत्र-
बद्धि लब्धि = मानसिक आयु/वास्तविक आयु×100
जैसे यदि कोई 10 वर्ष का बालक 12 वर्ष की आयु के लिए निर्मित मानसिक योग्यता परीक्षण कर लेता
है। तो उसकी वास्तविक आयु 10 वर्ष व मानसिक आयु 12 वर्ष मानी जायेगी। बालक की बुद्धि निकालने के लिए हम
उपरोक्त सूत्र का प्रयोग करते हैँ।
उदाहरण के लिए मानसिक आयु 12 वर्ष व वास्तविक आयु 10 वर्ष है तो बुद्धि लब्धि 12/10×100
होगी अर्थात 120 होगी।
टरमन (Terman) नामक मनोवैज्ञानिक ने बुद्धि लब्धि से व्यक्ति की बुद्धि का
पता लगाने के लिए निम्नलिखित वर्गीकरण प्रस्तुत किये -
बद्धि परीक्षण - इसे दो मुख्य रूप से विभाजित किया जा
सकता है -
1. वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण
2. सामूहिक बुद्धि परीक्षण
वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण - इसके जनक बिने (Binet) माना जाता है। इसमें एक समय में
एक व्यक्ति पर ही किया जाता है।
सामूहिक बुद्धि परीक्षण - इसका आरम्भ अमेरिका में प्रथम विश्वयूद्ध के समय हुआ था। इसमें एक समय में अनेक व्यक्तियों का परीक्षण किया जाता है। इसके दो भाग में विभाजित किया गया है।
i) भाषात्मक (Verbal)
ii) क्रियात्मक (Non-Verbal)
i) भाषात्मक परीक्षण - इसमें भाषा का
प्रयोग किया व अमूर्त बुद्धि की परीक्षा ली जाती है। इसका उद्देश्य है कि व्यक्ति
को लिखने पढ़ने का कितना ज्ञान है।इसमें निम्न प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते है:-
1.अंकगणित के प्रश्न
2.व्यावहारिक ज्ञान से सम्बन्धित प्रश्न
3.विलोम या समानार्थी शब्द
4.शब्दों को क्रमबद्ध तरीके से लिखना
ii) क्रियात्मक परीक्षण - जिन व्यक्तियों को लिखने पढ़ने में समस्या होती है या वे भाषात्मक रूप से कमजोर होते हैं, उनके लिये यह परीक्षण उपयुक्त रहता है। इस परीक्षण द्वारा व्यक्ति की कल्पना शक्ति या मूर्ति बुद्धि की क्षमता का आकलन होता है। क्रियात्मक परीक्षण में आस-पास मौजूद वास्तविक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है व्यक्ति को उन वस्तुओं से जुड़ी पहेलीनुमा परिस्थितियों को हल करने का कार्य दिया जाता है।
उदाहरण - विभिन्न आकारों के टुकड़ो को उन्हीं के जैसे साचे में व्यवस्थित करना, बिन्दु से बिन्दु मिलाकर चित्र पूर्ण करना, समान रंग व आकार की वस्तुओं को संयोजित करना, बिखरे हुए टुकड़ों को संयोजित कर चित्र पूर्ण करना, मार्ग योजना का भूलभलैया हल करना।
बौद्धिक विवृद्धि और विकास -
बौद्धिक विवृद्धि और विकास अनेक कारकों पर निर्भर करता है। मस्तिष्क और
सम्बन्धित स्नायुओं की परिपक्वता बौद्धिक विवृद्धि को सर्वाधिक प्रभावित करती है।
जन्म के समय बालक में उसकी बौद्धिक योग्यताएॅ अनेक विकास की प्रथमावस्था के
निम्नतम स्तर पर होती है। बालक की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसकी बौद्धिक योग्यताओं
में विवृद्धि और विकास होता रहता है।
शैशवावस्था से बाल्यावस्था तक यह विकास तीव्र गति से होता है परन्तु
किशोरावस्था के अंत से और प्रौढ़ावस्था में इस विकास की गति मंद हो जाती है।
वेश्लर का विचार है कि बौद्धिक विृवद्धि कम से कम 20 वर्ष की आयु तक
होती रहती है। आधुनिक शोधों से यह पता चलता है कि साठ वर्ष की आयु तक
बुद्धि-लब्धांक में वृद्धि होती रहती है।
शिक्षा के क्षेत्र में बुद्धि परीक्षणों का महत्व
शैक्षणिक मार्गदर्शन - विज्ञान के
साथ-साथ मनोविज्ञान ने मानवीय समस्याओं के समाधान में अपूर्व योगदान दिया है। इसके
द्वारा बच्चों के भविष्य निर्धारण की योजनाओं को बनाया जा रहा है।
शिक्षा के विकास के लिए प्राथमिक एवं गौण दोनों ही प्रकार के पाठ्यक्रमों की
आवश्यकता होती है। प्राथमिक पाठ्यक्रम बालकों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए
प्रस्तुत किया जाता है। जबकि गौण पाठ्यक्रम बालकों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए
प्रस्तुत किया जाता है। जबकि गौण पाठ्यक्रम उनकी आदत के अनुसार निश्चित किया जाता
है।
बुद्धि परीक्षणों द्वारा प्रत्येक छात्र की सही उन्नति के मार्ग को प्रशस्त्र
किया जाता है।
छात्र वर्गीकरण - ज्ञान की ग्रहणशीलता छात्रों की मानसिकता पर निर्भर करती
है। ज्ञान अर्जन बालकों की बुद्धि क्षमता पर सीधा प्रभाव डालता है। छात्र वर्गीकरण
में बुद्धि परीक्षाएँ उपयोगी होती है। वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक
कक्षा में सामान्य, सामान्य से उच्च एवं सामान्य से नीचे आदि स्तरों के
छात्र-छात्राएँ अध्ययनरत रहते है। प्रश्न उठता है कि क्या सभी बच्चों का शैक्षिक
विकास उत्तम हो सकेगा? ऐसी परिस्थिती में, बुद्धि पुरीक्षण के माध्यम से शिक्षक सामान्य, सामान्य से भिन्न
एवं उच्च आदि छात्रों का वर्गीकरण करके उपयुक्त शिक्षण का प्रबन्ध करेगा ताकि सभी
स्तरों के छात्र-छात्राएॅ पाठ्यक्रम को धारण करके उत्तम निष्पादन प्रस्तुत कर सके।
अधिगम प्रणाली में उपयोगी - सीखने की प्रक्रिया बु्द्धि पर निर्भर करताी है।
छात्र की लगन, अभ्यास प्रक्रिया, गलतियों का निरसन, धारणा एवं प्रोत्साहन में वृद्धि एवं स्थानान्तरण आदि में
बुद्धि का प्रभाव सर्वाधिक होता है।
अनुसन्धान - शिक्षा के क्षेत्र में विकास अनुसंधानों के ऊपर निर्भर
करता है। समस्याओं के समाधान के लिए अनुसंधान का सहारा लेना पड़ता है।
बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता -
1.सर्वोत्तम बालक का चुनाव करने में।
2.पिछड़े बालकों का चुनाव करने में।
3.अपराधी व समस्यात्मक बालकों का सुधार करने में।
4.बालकों का वर्गीकरण करने में।
5.बालकों की विशिष्ट योग्यताओं का ज्ञान करने में।
6.बालकों की क्षमता के अनुसार कार्य करवाने में।
7.बालकों की व्यावसायिक योग्यता का ज्ञान करने में।
8.बालकों की भावी सफलता का ज्ञान करने में।
9.अपव्यव का निवारण करने में।
10.राष्ट्र के बालकों की बुद्धि का ज्ञान करने में।
CTET Class 8 - बुद्धि
Reviewed by BasicKaMaster
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