CTET Class 7 - बाल केन्द्रित और प्रगामी शिक्षा की अवधारणाएँ

बाल केन्द्रित और प्रगामी शिक्षा की अवधारणाएँ

बाल केन्द्रित शिक्षा-

 प्राचीनकाल में शिक्षा का उद्देश्य बालकों के मस्तिष्क में मात्र जानकारियां भरना होता था । किन्तु आधुनिक शिक्षाशास्त्र में बालकों के सर्वांगीण विकास पर जोर दिया जाता है , जिसके
लिए बाल मनोविज्ञान सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।
● वर्तमान समय में बालक के सर्वांगीण विकास के महत्व को समझते हुए शिक्षकों के लिए बाल मनोविज्ञान की पर्याप्त जानकारी आवश्यक होती है
●भारतीय शिक्षाविद् गिजूभाई की बाल-केन्द्रित शिक्षा के क्षेत्र में विशेष एवं उल्लेखनीय भूमिका रही है । उनका साहित्य बाल-मनोविज्ञान, शिक्षाशास्त्र एवं किशोर साहित्य से संबंधित है ।
●आज की शिक्षा पद्धति बाल-केन्द्रित है। इसमे
प्रत्येक बालक की ओर अलग से ध्यान दिया जाता है, पिछड़े हुए और मंदबुद्धि तथा प्रतिभाशाली बालकों के
लिए शिक्षा का विशेष पाठ्यक्रम देने का प्रयास किया जाता है ।


बाल-केन्द्रित शिक्षा की विशेषताएँ-

बालकों को समझना-
● बालक के संबंध में शिक्षक को उसके व्यवहार के मूलआधारो आवश्यकताओं, मानसिक स्तर, रुचियों, योग्यताओं, व्यक्तित्व इत्यादि का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए ।
● शिक्षा बालक की मूल प्रवृतियों प्रेरणाओं और संवेगों पर आधारित होनी चाहिए ।
● बालक जो कुछ सीखता है, उससे उसकी आवश्यकताओं का बड़ा निकट संबंध है ।बच्चों की आवश्यकताएँ पूर्ण न होने पर वे बच्चे स्कूल
से भाग जाते हैं, मारपीट करते हैं, आवारागर्दी करते हैं, सड़कों पर लगे बिजली के बल्ब को फोड़ते है, आस-पास पडोस के लोगों को तंग करते है । मनोविज्ञान के ज्ञान के अभाव में शिक्षक मारपीट के द्वारा इन दोषों को दूर करता है, परंतु शिक्षक स्वयं जानता है कि इन दोषों का मूल कारण उनकी शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं में कमी होना है ।
● बाल मनोविज्ञान शिक्षक ओर बालकों के व्यक्तिगत भेदों से परिचित कराता है, और यह बताता है कि बच्चों में रुचि स्वभाव तथा बुद्धि आदि की दृष्टि
से भिन्नता पाई जाती है शिक्षा देने में शिक्षक को बालक और समाज की आवश्यकताओं में समन्वय करना होता है ।
शिक्षण विधि-  शिक्षाशास्त्र शिक्षक को यह बतलाता है कि बालकों को क्या पढ़ाया जाए ? परंतु असली समस्या यह है कि कैसे पढ़ाया जाए ?  इस समस्या को सुलझाने में बाल मनोविज्ञान शिक्षक की सहायता करता है ।
● बाल-मनोविज्ञान सीखने की प्रक्रिया, विधियों महत्वपूर्ण कारकों, लाभदायक और हानिकारक दशाओं, रुकावये, सीखने का वक्र तथा प्रशिक्षण संक्रमण आदि तत्वों से परिचित कराता है ।
● शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षण की विधियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करता है और उनमें सुधार का उपाय बतलाता है ।


मूल्यांकन और परीक्षण-
● शिक्षण से ही शिक्षक की समस्या हल नहीं होती, उसे बालकों के ज्ञान
और विकास का मूल्यांकन और परीक्षण करना होता है ।
● मूल्यांकन से परीक्षार्थी की उन्नति का पता चलता है और उसी अनुसार बालकों में परिवर्तन किए जाते हैं ।
● भारतीय शिक्षा प्रणाली में मूल्यांकन शब्द परीक्षा, तनाव और दुश्चिंत से जुड़ा हुआ है । मूल्यांकन के रस तनाव को दूर करने के लिए बाल-केंद्रित शिक्षा प्रणाली में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन पर जोर दिया गया है ।
● सतत् और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) का अर्थ छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली से है जिसमें छात्रों के विकास के सभी पक्ष सम्मिलित है ।
● यहाँ ‘सतत्’ अर्थात ‘निरंतरता’ का अर्थ इस बात पर बल देना है कि छात्रों की ‘वृद्धि और विकास’ के अभिज्ञात पक्षों का मूल्यांकन एक बार के कार्यक्रम के बजाए एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसे संपूर्ण अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में निर्मित किया गया है और यह शैक्षिक सत्रो की पूरी अवधि में फैली हुई है ।
● दूसरा पद ‘व्यापक’ का अर्थ है शैक्षिक और सह शैक्षिक पक्षों को शामिल करते हुए छात्रों की वृद्धि और विकास को परखने की योजना ।


पाठ्यक्रम-
● समाज और व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्कूल के पाठ्यक्रम का विकास, व्यक्तिगत विभिन्नताओं, प्रेरणाओं, मूल्यों एवं सीखने
के सिद्धांतों के मनोवैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिए ।
● पाठ्यक्रम बनाने में शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए
की शिक्षार्थी की और समाज की क्या आवश्यकता है, और सीखने की कौन सी क्रिया से ये आवश्यकताएँ सर्वोत्तम रूप से पूर्ण हो सकती है ।

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