CTET Class - 1 विकास की अवधारणा तथा अधिगम के साथ उसका सम्बन्ध


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विकास की अवधारणा :- विकास की प्रक्रिया अविरल क्रमिक तथा सतत् प्रक्रिया है, जो बालक में शारीरिक, क्रियात्मक, संज्ञात्मक, भाषात्मक, संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास करती है l
बाल विकास का तात्पर्य है :- बालक के विकास की प्रक्रिया, यह उसके जन्म से पूर्व गर्भ में ही प्रारम्भ हो जाती है, विकास की इस प्रक्रिया में वह गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, तथा प्रौढ़ावस्था इत्यादि अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्वता की स्थिति प्राप्त करता है l
बाल विकास Extra shot
विकास के अभिलक्षण :-
-विकास जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है l
-विकासात्मक परिवर्तन सामान्य से विशिष्ट की ओर, सरल से जटिल की ओर एकीकृत से क्रियात्मक स्तरों का अनुसरण करते है l

-विकास की प्रक्रिया सतत् के साथ-साथ विछिन्न अर्थात दोनों प्रकार की होती है, कुछ परिवर्तन तेजी से होते हैं और सुस्पष्ट रूप से दिखाई भी देते हैं, जैसे पहला दांत निकलना जबकि कुछ परिवर्तन दिन प्रतिदिन की क्रियाओं में आसानी से देख पाना संभव नहीं होता, क्योकि वे अधिक प्रखर नहीं होते जैसे व्याकरण को समझना l
-विकास बहुत ही लचीला होता है, इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति अपनी पिछली विकास दर की तुलना में किसी निश्चित क्षेत्र में आकस्मिक रूप से अच्छा सुधार प्रदर्शित कर सकता है, एक अच्छे परिवेश के द्वारा शारीरिक शक्ति, स्मृति और बुद्धि के स्तर में अनापेक्षित सुधार ला सकता है l
-विकासात्मक परिवर्तन मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार के हो सकते हैं जैसे आयु के साथ कद का बढना मात्रात्मक विकास परिवर्तन है वहीँ नैतिक मूल्यों का निर्माण गुणात्मक विकास परिवर्तन हैl
-विकास सामाजिक व सांस्कृतिक घटकों से प्रभावित हो सकता है इनमें प्राकृतिक घटना, पारिवारिक दुर्घटना एवं रीति रिवाज इन घटकों के उदाहरण हैं जिनका विकास पर गहरा असर पड़ता है l
-विकासात्मक परिवर्तनों की दर या गति में व्यक्तिगत अंतर हो सकते हैं, यह अंतर अनुवांशिक घटकों अथवा परिवेशीय प्रभावों के कारण हो सकते हैं l

-कुछ बच्चे अपनी  आयु की अपेक्षा कुछ अधिक क्रियाशील हो सकते हैं,  वही कुछ बच्चों के विकास की गति बहुत  धीमी होती है l

वृध्दि एवं विकास में अंतर

मानव विकास की अवस्थाएं:-
 
-विकास एक सतत् अर्थात लगातार  चलते रहने वाली प्रक्रिया है l
-शारीरिक विकास एक सीमा अर्थात  परिपक्वता प्राप्त करने के पश्चात रुक जाता है परंतु मानसिक विकास चिंतन, भाषा-ज्ञान, संवेग, चरित्र-विकास, समाजिक-व्यवहार इत्यादि के विभिन्न स्तरों के अनुसार परिवर्तित होता रहता है l
-विभिन्न आयु स्तरों के आधार पर मानव विकास की निम्न अवस्थाएं  निर्धारित की गई है

   Ø  शैशवावस्था- जन्म से 6 वर्ष की आयु तक
   Ø  बाल्यावस्था- 6 वर्ष की आयु से 12 वर्ष की आयु तक
   Ø  किशोरावस्था- 12 वर्ष  की आयु से 18 वर्ष की आयु तक
   Ø  व्यस्क अवस्था- 18 वर्ष की आयु से मृत्यु तक
अधिगम:-
-अधिगम का अर्थ होता है सीखना, अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है l इसके द्वारा हम ज्ञान अर्जित करते हैं, व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं l
-जन्म के तुरंत बाद व्यक्ति सीखना प्रारंभ कर देता है, अधिगम के द्वारा ही व्यक्ति का सर्वंगीण विकास होता है व वह इसके माध्यम से जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करता है l
-जैसा की हमने पूर्व में कहा कि अधिगम एक सीखने की प्रक्रिया है, परंतु रटकर किसी विषय वस्तु को याद करना अधिकम नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अधिगम व्यवहार में बदलाव लाता है और रटी हुई  विषयवस्तु व्यवहार में बदलाव लाने में इतनी सक्षम नहीं होती l

गेट्स के अनुसार अनुभव द्वारा व्यवहार में रूपांतर लाना ही अधिगम है l
क्रो एवं क्रो के अनुसार आदतों ज्ञान तथा अभिवृत्तियों का अर्जन ही अधिगम है l


बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाएं एवं उनका अधिगम से संबंध:-

शैशवावस्था व अधिगम  
-जन्म से 6 वर्ष तक की अवस्था शैशवावस्था  कहलाती है l
-इसमें जन्म से 3 वर्ष तक बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास तीव्र गति से होता है l
-इस काल में जिज्ञासा की  तीव्र प्रवत्ति बच्चों में पाई जाती है l

-इसी काल में बच्चों का समाजीकरण में प्रारंभ हो जाता है मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह  अवस्था भाषा सीखने की सर्वोत्तम अवस्था है  तथा शिक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है l

बाल्यावस्था एवं अधिगम:-
-6 वर्ष से 12 वर्ष तक की अवस्था बाल अवस्था कहलाती है l
-इस के प्रथम चरण 6 से 9 वर्ष में बालकों की लंबाई एवं भार  दोनों बढ़ते हैं बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि चिंतन एवं शक्तियों का विकास होता है l
-बाल अवस्था में बच्चों के सीखने की गति मंद वा सीखने का क्षेत्र विस्तृत हो जाता है l

किशोरावस्था व अधिगम:-
-12 से 18 वर्ष की अवस्था किशोर अवस्था कहलाती है l
-इस अवस्था में व्यक्ति बाल अवस्था से परिपक्वता की ओर अग्रसर होता है l
-इस अवस्था में किशोरों की लंबाई में वृध्दि होती है साथ ही मांसपेशियों में भी वृद्धि होती है l
-12 से 14 वर्ष की आयु के बीच लड़कियों की लंबाई व मांसपेशियां लड़कों की अपेक्षा तेजी से वृध्दि करते हैं l

-14 से 18 वर्ष की आयु के बीच लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की लंबाई व मांसपेशियां तेजी से बढ़ते हैंl -इस अवस्था में किशोर किशोरियों की बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है उनके ध्यान केंद्रित करने की क्षमता स्मरण शक्ति बढ़ जाती है l
-इस अवस्था में नशा अपराध की ओर उन्मुख होने की अधिक संभावना रहती है इसलिए इस अवस्था को जीवन के  तूफान का  काल भी कहा जाता है l
-इस अवस्था में बालकों को शिक्षकों मित्रों व अभिभावकों के उचित मार्गदर्शन एवं सलाह की आवश्यकता रहती है l

विकास के विभिन्न आयाम एवं उनका अधिगम से संबंध:-

बाल विकास एवं बाल मनोविज्ञान का अध्ययन निम्न महत्वपुर्ण बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता है l
   Ø  शारीरिक विकास  (Physical Development)
   Ø  मानसिक विकास (Cognitive or Mental Development)
   Ø  भाषा विकास (Language Development)

   Ø  सामाजिक विकास (Social Development)
   Ø  सांवेगिक विकास (Emotional Development)
   Ø  मनोग्यात्मक विकास (Motor Development)

शारीरिक विकास एवं अधिगम:-
-शारीरिक विकास के अंतर्गत बालक के शरीर का बाह्य एवं आतंरिक विकास सम्मिलित हैं l
-बाह्य विकास को हम ऊंचाई शारीरिक अनुपात में वृध्दि इत्यादि के रूप में स्पष्टतः देख सकते हैं l
-वहीँ शरीर के आंतरिक विकास को हम देख नहीं सकते  किंतु बालक के व्यवहार में होते परिवर्तन के आधार पर इसे महसूस कर सकते हैं l
-शारीरिक वृद्धि एवं विकास पर बालक के अनुवांशिक गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है l

-बालक का परिवेश एवं उसकी देखभाल का भी उसके शारीरिक वृध्दि पर प्रभाव पड़ता है l
-पौष्टिक आहार, शारीरिक व्यायाम तथा अन्य मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक जरूरतों पर सभी बच्चों का स्वास्थ्य, शारीरिक विकास निर्भर करता है l

मानसिक विकास एवं अधिगम:-
-संज्ञानात्मक या मानसिक विकास से तात्पर्य बालक की उन सभी मानसिक योग्यताओं एवं क्षमता में वृध्दि और विकास से है जिनके परिणाम स्वरूप बालक अपने लगातार बदलते वातावरण में ठीक प्रकार से समायोजन करता है, वह विभिन्न प्रकार की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का पर्याप्त उपयोग कर पाता है l

-कल्पना करना, स्मरण करना, विचार करना, निरिक्षण करना, समस्या समाधान करना तथा निर्णय लेने की योग्यता इत्यादि संज्ञानात्मक विकास के फलस्वरूप विकसित होते हैं l

सांवेगिक विकास एवं अधिगम:-
-संवेग जिसे  भाव भी कहा जाता है, इसका अर्थ होता है ऐसी अवस्था जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है l
-भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, स्नेह एवं विषाद इत्यादि संवेग के ही उदहारण हैं l
-बालक में आयु बढ़ने के साथ ही इन संवेगों का विकास भी होता रहता है व्यक्ति का संवेगात्मक व्यवहार शारीरिक वृध्दि, सामाजिक विकास एवं नैतिक विकास को भी प्रभावित करता है l
-बालक के संवेगात्मक विकास पर पारिवारिक वातावरण बहुत प्रभाव डालता है

मनोग्यात्मक विकास एवं अधिगम:-
-व्यक्ति की क्रियात्मक शक्तियों, क्षमताओं या योग्यताओं का विकास ही मनोग्यात्मक या क्रियात्मक विकास कहलाता है l
-ऐसी शारीरिक गतिविधियाँ या क्रियाएं जिनको संपन्न करने के लिए मांसपेशियों और तंत्रिकाओ की   गतिविधियों के संयोजन की आवश्यकता होती है जैसे चलना, बैठना, बोलना इत्यादि


-क्रियात्मक विकास बालक के शारीरिक विकास, आत्मविश्वास अर्जित करने, स्वस्थ रहने, स्वावलंबी होने में व उचित मनसिक विकास में सहायक होता है l

हम सहृदय धन्यवाद देते है प्रियंका को यह अतिमहत्वपूर्ण नोट्स प्रदान करने के लिए।
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